|| श्यामा ( घोड़ी ) प्रसंग ||
|| भक्ति प्रवाह ||
जिसे एक जीवन में प्रभु का प्यार मिलता है।
उसे बस आँसुओ का उपहार मिलता है।
और न पूछो दिल की उस
बेकली का हाल मत पूछो ।
न तन से प्राण जाते है
और न प्राणाधार मिलता है।
भला किसको दिखाए मर्ज की बढ़ती हुई मंजिल ।
न कोई वैध मिलता है न कोई उपचार मिलता है।
और दूर रहने पर भी न जाने क्या क्या बात होती है।
ह्रदय के तार से जब उस ह्रदय का तार मिलता है।
और जहाँ छल छलाता आँसू जल दिखलाई देता है,
उसी मानस में हमे सावला सरकार दिखता हैं।
मुर्दे के समान थी शांत परी-2
उससे पर देह न छोड़ा गया
और तन तो मजबूर रहा पर
मन को न भाव से मोड़ा गया
और पशु श्यामा की प्रीति से जो था जुड़ा
प्रभु से वह तार न तोड़ा गया
और करुणानिधि करी करुणा
नही डिब्बा ही रेल में जोड़ा गया।
छमा करें हुई भूल हमी से
किसको दोस लगाए
श्यामा मरी परी डिब्बा में
चाहे तो ले जाये।
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