Monday, January 27, 2020

|| श्यामा ( घोड़ी ) प्रसंग ||भक्ति प्रवाह ||

|| श्यामा ( घोड़ी ) प्रसंग || 

|| भक्ति प्रवाह ||

जिसे एक जीवन में प्रभु का प्यार मिलता है।
उसे बस आँसुओ का उपहार मिलता है।
और न पूछो दिल की उस
बेकली का हाल मत पूछो ।
न तन से प्राण जाते है
और न प्राणाधार मिलता है।
भला किसको दिखाए मर्ज की बढ़ती हुई मंजिल ।
न कोई वैध मिलता है न कोई उपचार मिलता है।
और दूर रहने पर भी न जाने क्या क्या बात होती है।
ह्रदय के तार से जब उस ह्रदय का तार मिलता है।
और जहाँ छल छलाता आँसू जल दिखलाई देता है,
उसी मानस में हमे सावला सरकार दिखता हैं।
मुर्दे के समान थी शांत परी-2
उससे पर देह न छोड़ा गया
और तन तो मजबूर रहा पर
मन को न भाव से मोड़ा गया
और पशु श्यामा की प्रीति से जो था जुड़ा
प्रभु से वह तार न तोड़ा गया
और करुणानिधि करी करुणा
नही डिब्बा ही रेल में जोड़ा गया।

छमा करें हुई भूल हमी से
किसको दोस लगाए
श्यामा मरी परी डिब्बा में

चाहे तो ले जाये।

Tuesday, January 21, 2020

संसार बंधन से मुक्ति

  

।। मुक्ति ।।

जवे यमराज रजाये सुते मुहे ले चलिहे भट बाँध नटैया ।
सांस ते घोर पुकारते आरत कौन सुने चहु ओर डटैया ।।
तात न मात न स्वामी सखा सूत बंधु विशाल विपत्ति बटैया ।
और एक कृपाल तहाँ तुलसी, दशरथ को नंदन बंदी कटैया ।।

Friday, January 17, 2020

जीवन सारांश

                                                                                                             
                                                    || जीवन सारांश ||

रे मन मुसाफिर निकलना पड़ेगा ।
काया कुटी खाली करना पड़ेगा ।।
चमड़े के कमरे को तू क्या संभाले ।
जिस दिन तुझे घर का मालिक निकले ।।
इसका किराया भी भरना पड़ेगा ।
काया कुटी खाली करना पड़ेगा ।।
आयेगा नोटिस जमानत न होगी ।
पल्ले में गर कुछ अमानत न होगी ।।
फिर होके कैद तुझको चलना पड़ेगा ।
काया कुटी खाली करना पड़ेगा ।।
मेरी न मानो यमराज तो मनायेंगे ।
तेरा कर्म दंड मार मार भुगताएंगे ।।
घोर नर्क बीच दुःख सहना पड़ेगा ।
काया कुटी खाली करना पड़ेगा ।।
कहे गीता नंद फिरेगा तू रोता ।
लख चौरासी में खाये गोता ।।
फिर फिर जन्म लेके मरना पड़ेगा ।।
काया कुटी खाली करना पड़ेगा ।।





Jitendra kumar

Tuesday, January 7, 2020

अनुग्रह

                                                                                                                                                                                                                                  || अनुग्रह ||
परिश्रम करे कोई कितना भी लेकिन /
कृपा के बिना काम चलता नहीं है। ।।
निराशा निशा नस्ट होती न तब तक ।
दया भानू जब तक निकलता है। ।।
दमित वासनाये अमित रूप ले जब ।
अंतः करण में उपद्रव मचाती तब ।।
फिर कृपा सिंधु श्री राम के अनुग्रह ।
के बिना मन संभलता नहीं हैं ।।
मृगवारी जैसे असत्य इस जगत से ।
पुरुसार्थ के बल पे बचना है मुश्किल ।।
पर श्री हरि के सेवक जो छल छोड़ बनते ।
उन्हें ये संसार फिर चलता नहीं हैं। ।।
सद्गुरु शुभाशीष पाने से पहले ।
जलता नहीं ज्ञान दीपक भी घट में ।।
और बहती न तब तक की सर्पण की सरिता ।
अहंकार की जब तक गलता नहीं है। ।।
राजेश्वरानंद आनंद अपना पाकर ही ।
लगता है जग जाल सपना ।।
तन बदले कितने भी पर प्रभु भजन बिन ।

कभी जन का जीवन बदलता नहीं हैं। ।।